चोटी की पकड़–31
एजाज ने हारमोनियम हटा दिया। एक पेग और उठाकर राजा साहब को दिया, एक खुद लिया।
शराब, बातचीत और गाने के बीच एजाज देखती जाती है, मटियाबुर्ज पार हुआ-शाह वाजिद अली का कारागार, तेल का केंद्र बजबज पार हुआ, उलूबेड़िया पार हुई, कितनी ही मिलें निकल गईं, जिनका अधिकांश मुनाफा विदेशियों के हाथ जाता है। एजाज अंग्रेजी जानती है, संवाद-पत्र पढ़ती है, दूर निष्कर्ष तक आसानी से पहुँच जाती है, संपादक की टिप्पणी पर टिप्पणी लगा सकती है।
गुलशन राजा साहब को सिगरेट और पान देती जाती है। गाना बंद करके एजाज ने सिगरेट के लिए उँगली बढ़ायी। गुलशन ने हीरे की पाइप में सिगरेट लगा दिया। एजाज पीने लगी।
"तुम्हारे नहाने, भोजन और आराम करने का वक्त हुआ।" राजा साहब ने कहा।
"पूजा करने की बात छोड़ दी? " एजाज ने बड़ी-बड़ी आँखें मिलाईं।
"वह दिल में होती रह गई।"
"उसने मिला भी दिया।"
राजा खामोश हो गए। एजाज ने कहा, "तुम उठो। नहाना मत। तवालिया गर्म पानी से निचोड़कर बदन पोंछवा डालो, धोती बदल दो। शराब पर नहाना !"
राजा साहब उठ गए। एजाज बैठी हुई, नदी की शुभ्र शोभा, श्याम तटभूमि देखती रही।